नज़राना इश्क़ का (भाग : 22)
उदयपुर सिटी पैलेस के करीब ही, वह एक बेहद ऊँची आलीशान इमारत जान पड़ती थी। हल्के गुलाबी रंग के पत्थरो के साथ मिश्रित संगमरमर सी खूबसूरत दीवारों पर लगी रंग बिरंगी लाइट्स उसे और आकर्षक बना रही थी। उस इमारत की दीवारें इतनी साफ और चमकदार थी कि कि उनपर लाइट्स के प्रतिबिंब बन रहे थे, जो उतने ही चमकदार जान पड़ते थे, जिससे उसकी खूबसूरती में चार चांद लग गया था।
इमारत की डिज़ाइन बेहतरीन तरीके से की गई थी, उसकी शैली में प्राचीन कला के साथ आधुनिक शैली का अच्छा मिश्रण किया गया था। उसके साथ एक छोटा सा आंगन और बाग भी जुड़ा हुआ था जिसमें खूब सारे फूल-पौधे लगे हुए थे। सुरक्षा की दृष्टि से चारों तरफ बाउंड्री वॉल बनी हुई थी, जिसमें सामने की ओर काफी ऊँचा मजबूत लोहे का गेट लगा हुआ था, जिससे सटकर की गार्ड्स के लिए केबिन बनाई गई थी, केबिन में बैठा वॉचमैन पूरी मुस्तैदी के साथ अपनी ड्यूटी फरमा रहा था।
लान में एक अधेड़ व्यक्ति धीमी चाल से टहल रहा था। उसके शरीर पर महंगे लिबास और एक विशाल आरामकुर्सी के आसपास मुस्तैदी से खड़े चार व्यक्ति जो कि सामान्य वेशभूषा धारण किए हुए थे, उसके इस इमारत के मालिक होने की चुगली कर रहे थे। वह थोड़ी देर टहलने के बाद फिर एक जगह खड़ा हो जाता था, उसके खड़े होते ही सभी उस आरामकुर्सी को ले जाकर वहां रख देते। उसके चेहरे पर उपजे भावो से स्पष्ट होता था कि वह कितना थक गया था मगर वह फिर उठकर लान में घूमते कुछ दूर तक चला, और बार बार यही क्रिया दोहराता रहा। रात के बारह बजने को थे, सभी उसकी ओर आस भरी दृष्टि से देख रहे थे कि अब तो शांति से बैठ जाये मगर वह व्यक्ति निरंतर उसी क्रिया को दोहराता रहा। उसकी आँखों में नींद का नामोनिशान नहीं था।
"पानी…!" वह व्यक्ति आरामकुर्सी पर विराजते हुए आदेश देने के स्वर में बोला।
"जी साहब…!" एक ने कहा और जल्दी से पानी लेने चला गया। जल्दी ही वह काँच के चमकते गिलास में पानी लेकर उस व्यक्ति के पास खड़ा हुआ।
"हूं…! तुम सबको नींद लग रही है क्या…?" पानी पीते हुए उस व्यक्ति ने पूछा।
"ज..जी सर..!" जिसने उसे पानी दिया था उस व्यक्ति ने धीरे से गुंगियाते हुए बोला।
"..चाहे नींद लगे या चक्कर आये जब तक मैं जाग रहा हूँ तुम सबको जागना ही होगा, सोने के पैसे नहीं देता मैं तुम सबको…!" उस व्यक्ति ने घुड़कते हुए कठोर शब्दों में कहा, सभी को जैसे सन्न मार गया, अगले ही पल सन्नाटा पसर गया।
"राजा कहाँ है.! भेजो उसे…!" उस व्यक्ति ने वापिस गिलास थमाते हुए कहा।
"यस राजपूत सर…!" उसके सामने एक नौजवान, सुंदर सजीला युवक आकर खड़ा हुआ, जिसकी आँखों में अजीब सी चमक थी।
"तुम सब यहां से थोड़ी दूर जाओ…!" मिस्टर राजपूत ने सभी को वहां से जाने का आदेश देते हुए कहा। "आओ राजा.. और सुनाओ क्या समाचार है!" मिस्टर राजपूत ने राजा को अपने समीप बुलाते हुए कहा।
"समाचार अच्छा तो नहीं है सर..! हमारी लाख कोशिशों के बावजूद बिजनेस लगातार घाटे में चल रहा है, अगर ऐसे में भी आप अत्यधिक फिजूलखर्ची करते रहेंगे तो….!" राजा चिंतित स्वर में बोला, मगर उसकी बात पूरी होने से पहले मिस्टर राजपूत ने उसकी बात काट दी।
"तुम जिस काम के लिए आये हो बस वही करो मिस्टर राजा! हमें क्या करना है ये ना सिखाओ, हमारा काम हमपर छोड़ दो…!" मिस्टर राजपूत अंगारो की तरह बरसते हुए बोले। तभी एक जोर की आवाज ने उन दोनों का ध्यान आकर्षित किया, राजा दौड़ते हुए गेट की ओर भागा, गेटमैन्स और वॉचमैन सहित सभी व्यक्ति गेट की ओर भागे, मिस्टर राजपूत भी धीरे धीरे गेट के पास जाने आगे। गेट से एक बेहद महंगी और खूबसूरत आसमानी नीले रंग की कार टकराई हुई थी, जिस कारण कार का बोनट काफी क्षतिग्रस्त हुआ था, जल्दी से गेट खोला गया राजा भागकर बाहर की ओर गया, सभी उसके पीछे हो लिए।
"सर…!" राजा ने गेट खोलते हुए जोर से चीखा।
"क्या हुआ…!" मिस्टर राजपूत ने पूछा।
"श….शिक्षा मैम…! वो अंदर कार में बेहोश हैं।" राजा हड़बड़ाते हुए बोला, उसके आँखों में आँसू उतर आए थे।
"मगर सुबह तो मैम दूसरी कार लेकर गयी थीं, आज फिर नई कार…!" वॉचमैन ने हैरानी जताते हुए कहा।
"कार्स बदलना मैम के लिए कोई बड़ी बात नहीं है, जब साहब ही उन्हें खुली छूट दे रक्खे हैं तो….!" कोई एक फुसफुसाया।
"बकवास बंद करो, यहाँ सर्वेश राजपूत की बेटी बेहोश हुई है और तुम सबको कार की चिंता पड़ी हुई है।" गुस्से में फटकारते हुए गुस्से में डाँट लगाकर कहा।
"म..मैं कोई ब..बेहोश नहीं हुई डैड्डी जी..!" राजा के कंधे पर हाथ रखकर उसके सहारे कार से निकलते हुए शिक्षा ने लड़खड़ाते स्वर में कहा।
"तुमने आज फिर पी…!" सर्वेश दौड़कर उसके पास जा, उसको पकड़ते हुए बोले। "दूर हटो तुम सब यहां से…!" उसने सभी को गुस्से में कहा और शिक्षा को पकड़कर घर की ओर ले जाने लगे।
"अ.. आप तो जानते हो डैड्डी जी! कि मुझे जो चाहिए वो चाहिए ही होता है… हिच्च..! पहले निमय मुझे उस जाह्नवी से बदला लेने के लिए चाहिए था, पर अब मुझे उससे सच्चा वाला प्यार हो गया है, मैं उसके बिना नहीं रह सकती…!" शिक्षा अपने पापा के कंधों पर झूलती लड़खड़ाते स्वर में बोली।
"ये क्या बेअदबी है शिक्षा! तुम अपना स्टेटस भूल रही हो, अरे हमारे खानदान के मान सम्मान की कुछ तो कदर करो, और तो और वो लड़का तुम्हें घास तक नहीं डालता…!" सर्वेश गुस्से से लाल होते हुए बोला।
"फिर भी मैं उसे म...मजबूर कर दूंगी डैड्डी जी…! या तो फिर वो म...मेरा होगा, य...या फिर किसी का भी न...नहीं होगा। मेरी सच्ची मोहब्बत के सामने उसे अपने घ..घुटने टेकने ही होंगे..!" शिक्षा चलते चलते लड़खड़ाकर गिरने से बची, यह देखते ही राजा उसकी ओर दौड़ता हुआ आया, मगर फिर सर्वेश को देख वह थोड़ी दूर ही रुक गया।
"जिद नहीं करते बच्चे! हम लोग अपने स्टेटस को कभी दांव पर नहीं लगाते, चल अब खाना खा ले…!" सर्वेश ने उसके बालों को प्यार से सहलाते हुए कहा। अब तक वे दोनों घर के भीतर विशालकाय बरामदे में आ गए थे।
"न...नहीं डैड्डी..! नो खाना.. चलो मैं स..सोती हूँ.. ग..गुड नाईट..!" कहते हुए वह वही गिर पड़ी।
"श...शिक्षा…!" सर्वेश जोर से चीख पड़ा।
"अरे ड.. डैड्डी जी मैं ठीक हूँ!" शिक्षा खुद को संभालकर उठाने की कोशिश करते हुए होंठो से बह रहे खून को पोंछते हुए बोली। "अब या तो निमय मेरा होगा या किसी का नहीं…!" कहते हुए शिक्षा उठकर अपने कमरे में चली गयी। बरामदे के एक कोने पर खड़ा राजा यह सुनकर सन्नाटे में था, उसकी आँखों से आँसुओ की धार बह निकली।
"काश…! काश… कि मिस्टर राजपूत मेरी हिदायतों को माने होते तो आज मेरी शिक्षा ऐसी नहीं होती…! ये सब जिसके भी कारण हो रहा है मैं उसे नहीं छोडूंगा। निमय अब मेरी शिक्षा को दिए दर्द का हिसाब चुकाने को तैयार हो जाना, तुम्हारी राहों में अब नागफनी बनकर राजा आ रहा है।" उसकी आँखें उबल पड़ी थी, वह शिक्षा को इस हालत में देखकर अंदर ही अंदर घुटने लगा था, पिछले कुछ महीनों से शिक्षा की हालत और लापरवाही हद से ज्यादा बिगड़ने लगी थी। राजा की नजर में इन सबकी वजह सिर्फ एक ही था… निमय!
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सुबह हो चुकी थी, वातावरण में अजीब सी खुशबू फैली हुई थी, मानों ऐसा लग रहा था कि धरती आकाश सब मिलकर त्यौहार मनाने की तैयारी में जुटे हुए हो। चिड़ियों का मधुर कलरव मन को रोमांचित कर रहा था, फरी सुबह की नित्य क्रिया स्नानआदि से निवृत होकर ध्यान की मुद्रा में बैठी हुई थी। तभी उसका फोन रिंग हुआ, उसने जल्दी से उठते हुए कॉल रिसीव किया।
"हे भाई आप..! गुड मॉर्निंग!" फरी ने कान से फोन लगाते हुए कहा।
"राधे राधे फरु…!" उधर से विक्रम की आवाज आई।
"आज बड़ी सुबह याद आ गयी बहन की…!" फरी ने हंसते हुए कहा।
"मतलब क्या है तुम्हारा…? बहन भी कोई भूलने की चीज होती है क्या?" विक्रम नाराजगी जताते हुए बोला।
"सॉरी ना भाई…! कहाँ हो आप.., होली की तैयारी कैसी चल रही आपकी..!" फरी ने माथे पर हाथ मारने के बाद खुशी से चहकते हुए पूछा।
"बहुत अच्छी..! अभी भी उसी की तैयारी में निकला हूँ।" विक्रम ने हँसते हुए कहा।
"इतनी सुबह..? कोई जरूरी काम है क्या भाई?" फरी ने चिंतित स्वर में पूछा।
"हां बहुत जरूरी काम..! मां और बड़े ने कहा है जब तक मैं इस काम को कर न लूँ वापिस घर पर कदम ना रखूं…!" विक्रम ने अपनी दयनीय दशा का वर्णन करते हुए कहा।
"ऐसा भी क्या काम करना है आपको…? किसी और को भेज लेते..!" फरी का मुंह लटक गया।
"पर उनका कहना है कि ये काम बस मैं कर सकता हूँ..!" विक्रम ने मुँह बनाकर कहा।
"हुंह…! जोक अच्छा मार लेते हो आप, बस यही एक काम तो होता है आपसे…!" प्रत्युत्तर में फरी ने भी मुँह बनाकर जवाब दिया।
"अरे बाबा सच में…!" विक्रम ने फरी को यकीन दिलाने के लिए अपने एक एक शब्द पर जोर देते हुए कहा।
"जाइये भाई…! आप सो लीजिये..! और हां अगर मन हो तो ब्रेकफास्ट करने मेरे पास आ जाइये..!" फरी ने हँसकर विक्रम को चिढ़ाते हुए कहा।
"तो गेट खोलो, तब न आऊंगा…!" विक्रम ने हँसते हुए कहा, यह सुनकर फरी झेंप गयी।
"क्या मतलब…!" फरी ने हैरानी से पूछा।
"गेट खोलकर देख लो ना पगली…!" विक्रम ने हँसते हुए कहा। फरी गेट खोलकर बाहर आई, उसे अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था। नीचे विक्रम रेड कलर की मर्सिडीज के बोनट पर बैठा हुआ था जो फरी को देखते ही हाय का इशारा कर हाथ हिलाने लगा, फरी तेजी से नीचे की ओर भागी।
"भाई आप यहां…!" फरी ने हैरानी जताते हुए कहा।
"हाँ भई…! अब काम मिला है तो करना ही पड़ेगा।" विक्रम ने मुँह बनाकर हँसते हुए कहा।
"कैसा काम..?" फरी ने सवालियां निग़ाहों से पूछा।
"वही जो कोई नहीं कर सकता…!" विक्रम ने बात को गोल गोल घुमाते हुए कहा।
"ऐसा क्या है जो कोई नहीं कर सकता और आप कर सकते हैं…!" फरी विक्रम को चिढ़ाकर मजे लेते हुए बोली।
"तुम्हारा अपहरण…!" विक्रम बोनट से नीचे उतरते हुए कहा।
"क्या मतलब है आपका?" फरी ने चौंकते हुए पूछा।
"मुझे माँ और भाई से आर्डर मिला है कि तुम्हें घर ले आऊं… अब खुद से नहीं आओगी तो अपहरण ही करना पड़ेगा न..!" विक्रम अपने गालों पर हाथ रखकर मुँह बनाते हुए कहा।
"ऐसे कौन अपनी बहन को लेने आता है यार… मैं ना जा रही…!" फरी ने झूठी नाराजगी जताई।
"जा जल्दी से तैयार हो जा… ज्यादा लेट किया तो मम्मी मार के पकौड़ा बना देगी तेरे भाई को..!" विक्रम ने उसे किसी शातिर की तरह ब्लैकमेल करते हुए कहा।
"तो बन जाना आप पकौड़ा…, बहन को किडनैप करने आये हैं किडनैपर… हुंह!" फरी ने मुँह बनाते हुए कहा।
"कैसी बहन है यार मेरी… भोंदू बहन…!" विक्रम ने नाक सिकोड़ते हुए कहा।
"आप भोंदू भाई…!" फरी ने मुँह बनाते हुए कहा और जल्दी से अपने कमरे की ओर भागी। "आओ..!" उसने विक्रम को बुलाया मगर विक्रम ने उसे जल्दी तैयार होने को बोलकर वही रुक गया।
"ओये जल्दी कर ना, दोनो को मिलकर होली की तैयारी भी करनी है…!" विक्रम ने चिल्लाते हुए कहा, थोड़ी ही देर में फरी पूरी तैयारी से निकली, गुलाबी सूट में वह किसी परी से कम नहीं लग रही थी। दोनो जल्दी से मर्सिडीज में सवार हुए और विक्रम ने गाड़ी स्टार्ट कर दी।
क्रमशः….
shweta soni
29-Jul-2022 11:40 PM
Bahut achhi rachana
Reply
🤫
28-Feb-2022 12:21 AM
अब ये कौन राजपूत टपक पड़ा,🤔🤔 कहीं ये कोई बहनों का शोर नही, देखते हैं आगे क्या होता है वैसे ये मार पीट कर पकोड़ा भी बनते हैं क्या?
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मनोज कुमार "MJ"
28-Feb-2022 01:42 PM
KyA pata.. banta bhi hoga😝😂
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Seema Priyadarshini sahay
02-Feb-2022 05:30 PM
बहुत ही रोचक
Reply
मनोज कुमार "MJ"
28-Feb-2022 01:42 PM
Thank you
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